Local & National News in Hindi

2024 के डैमेज को कंट्रोल करने में जुटी योगी सरकार, OPS पर ले लिया बड़ा फैसला

21

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) को कैबिनेट से हरी झंडी दे दी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में इस संबंध में लाए गए प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है. इसके चलते अब सूबे में 28 मार्च 2005 से पहले प्रकाशित विज्ञापनों के आधार पर सरकारी नौकरी पाने वालों को पुरानी पेंशन स्कीम का विकल्प चुनने का अवसर मिलेगा. सरकारी कर्मचारियों की काफी अरसे से ओपीएस की मांग थी, लेकिन योगी सरकार ने लोकसभा चुनाव में मिली हार बाद के पुरानी पेंशन को बहाल करने का दांव चला है.

सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन (2005 के पहले जैसी) एक ऐसा मुद्दा है, जिससे सीधे तौर पर राज्य के करीब 28 लाख कर्मचारी, शिक्षक और पेंशनर्स जुड़ रहे हैं. यह शिक्षित वर्ग है और समाज में राय कायम करता है. समाज में ना सही, यदि परिवार में भी इन्होंने एक राय बना ली तो एक करोड़ वोटरों तक इनकी पहुंच है. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में ओपीएस एक बड़ा मुद्दा बना था और 2024 के लोकसभा चुनाव में पुरानी पेंशन पर कोई ठोस निर्णय नहीं लेना, बीजेपी को भारी पड़ गया. पुरानी पेंशन पर सॉफ्ट कॉर्नर पॉलिसी रखने वाले इंडिया गठबंधन को सरकारी कर्मियों ने सियासी संजीवनी देने का काम किया था.

उत्तर प्रदेश के नतीजों पर एनडीए और इंडिया गठबंधन की नजरें लगी थीं, जहां पर सरकारी कर्मियों ने बीजेपी के हाथ निराशा तो इंडिया गठबंधन को सियासी बूस्टर दे दिया. सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से इंडिया गठबंधन 43 सीटें जीतने में कामयाब रहा और एनडीए को 36 सीटों से संतोष करना पड़ा है. बीजेपी के लिए यूपी में तगड़ा झटका लगा है और 2019 के मुकाबला 29 सीटों को उसे नुकसान उठाना पड़ा है. इसके चलते ही बीजेपी बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई थी और पीएम मोदी ने एनडीए के सहयोगी दलों के बैसाखी के सहारे सरकार बनाइ है, लेकिन यूपी के नतीजों ने बीजेपी की टेंशन 2027 के लिए बढ़ा दी है.

ओपीएस पर कांग्रेस और सपा का रुख

2024 के लोकसभा चुनाव की सियासी सरगर्मी के बीच ओपीएस बहाली के लिए गठित नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) के संयोजक शिव गोपाल मिश्रा ने कहा था कि जो भी दल ‘पुरानी पेंशन बहाली’ के मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल करेगा, सरकारी कर्मचारी उसे ही वोट करेंगे. कांग्रेस पार्टी ने ओपीएस को अपने घोषणा पत्र में प्रत्यक्ष तौर पर शामिल नहीं किया था, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने घोषणा पत्र जारी करते समय कहा था, ये मुद्दा हमारे दिमाग में है. हम इससे पीछे नहीं हट रहे हैं बल्कि इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट आने का इंतजार कर रहे हैं.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव के दौरान ओपीएस के मुद्दे पर सॉफ्ट कॉर्नर जारी रखा था. उन्होंने ओपीएस के लिए मना नहीं किया बल्कि सपा ने वादा भी किया था कि हम सत्ता में आएंगे तो इसे बहाल करेंगे. नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के अध्यक्ष विजय बंधु ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात कर उनसे अपील की थी कि वे पुरानी पेंशन बहाली को पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करें. इसके बाद ही विजय बंधु ने अपने संगठन की मदद से ओपीएस के मुद्दे पर जमकर आवाज बुलंद की थी.

विजय बंधु लोकसभा चुनाव में भी सोशल मीडिया पर ओपीएस का मुद्दा लगातार उठाते रहे और कहते रहे कि एनपीएस जीत रहा या ओपीएस. उन्होंने 24 मई को सोशल मीडिया पर लिखा था कि उत्तर प्रदेश के 52 लोकसभा क्षेत्रों के अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि एनपीएस हार रही है और ओपीएस जीत रही है. जब तक एनपीएस की विदाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं. ऐसे में नतीजे आए तो यूपी में बीजेपी के पैरों तले से सियासी जमीन ही खिसक गई.

ओपीएस को बहाल करने का सियासी दांव!

माना जाता है कि 2024 में बीजेपी की हार में सरकारी कर्मचारी एक अहम मुद्दा रहे. 2022 के चुनाव में भी बीजेपी को सरकारी कर्मचारियों ने यूपी में तगड़ा झटका दिया था. 2022 यूपी विधानसभा चुनाव में पोस्टल-बैलट से पड़े वोट में सपा गठबंधन सबसे आगे रही, उसे 51.5 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि भाजपा गठबंधन को 33.3 प्रतिशत वोट मिले थे. इस तरह पोस्टल बैलेट के हिसाब से सपा 300 से ज्यादा सीटों पर आगे रही थी, जबकि बीजेपी गठबंधन 100 सीट पर ही बढ़त मिली हुई थी. उस समय बीजेपी नहीं जागी, लेकिन 2024 के झटके ने उसकी चिंता बढ़ा दी इसलिए योगी सरकार ने मंगलवार को ओपीएस को बहाल करने के सियासी दांव चला है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्ष में मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में ओपीएस के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है. यूपी सरकार ने 28 मार्च 2005 को यह प्रावधान किया था कि 1 अप्रैल 2005 या उसके बाद कार्यभार ग्रहण करने वाले कर्मचारी राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के दायरे में होंगे. तमाम ऐसे शिक्षक व कार्मिक हैं, जिनकी नियुक्ति 1 अप्रैल 2005 को या उसके बाद हुई, लेकिन उस नौकरी का विज्ञापन 28 मार्च 2005 से पहले निकला था. ये कर्मी लंबे समय से उन्हें पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) का लाभ देने की मांग कर रहे थे. केंद्र सरकार इस तरह के कर्मियों को पहले ही यह सुविधा दे चुकी है.

इन लोगों को नहीं मिलेगा ओपीएस का लाभ

योगी कैबिनेट से अनुमोदित प्रस्ताव के अनुसार, ऐसे कार्मिक जिनकी नियुक्ति 1 अप्रैल 2005 को या उसके बाद हुई है, लेकिन नियुक्ति के लिए पद का विज्ञापन एनपीएस लागू किए जाने संबंधी अधिसूचना जारी होने की तिथि 28 मार्च 2005 से पूर्व प्रकाशित हो चुका था, उन्हें पुरानी पेंशन योजना का एक बार विकल्प उपलब्ध कराए जाने का निर्णय लिया गया है. ऐसे में इस विज्ञापन के आधार पर नियुक्ति कभी भी हुई हो उसे ओपीएस का लाभ लेने के लिए विकल्प मिलेगा. हालांकि, 28 मार्च 2005 के बाद सूबे में जो भी सरकारी नौकरी निकली है उस पर ओपीएस का लाभ नहीं मिल सकेगा. इसीलिए सरकार ने भले ही ओपीएस पर दांव चला हो, लेकिन सूबे में सरकारी कर्मचारियों की मांग अभी पूरी तरह से पूरी नहीं हुई.

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.