उत्तराखंड के बने 25 साल हो चुके हैं। सरकार विकास के बड़े-बड़े दावे तो करती है लेकिन हल्द्वानी से 8 किलोमीटर दूर काठगोदाम स्थित दानीजाला गांव विकास से कोसों दूर है।गौलानदी के पार बसे इस गांव के लोग आधुनिकता और डिजिटल के युग में आज भी रस्सी और तार से बनी ट्रॉली के सहारे अपनी जान जोखिम में डालकर उफनती नदी को रोजाना पार कर अपने घर आने जाने के लिए मजबूर हैं को मजबूर हैं इस गांव को आजाद हिंद फौज सेनानी गांव के नाम से भी जाना जाता है। यही नहीं इस गांव के हर एक परिवार का व्यक्ति सेना में अपनी सेवाएं दे रहा है। गांव का लोगों का कहना है कि उनकी जिंदगी जिन दो पेड़ों के भरोसे टिकी है उनमें से एक सूख चुका है। जबकि दूसरा सूखने के साथ सड़ भी गया है। ट्राली को खींचने के लिए जरूरी लोहे का तार इन दो पेड़ों पर ही बांधा गया है। इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं है इन दो पेड़ों के सहारे के गांव के 120 लोग आना-जाना करते हैं।जब उनका हाल ये है तो ट्राली में बैठने के बाद उफनाती गौला नदी को पार करने वाले ग्रामीणों की जिदंगी कितनी खतरे में होगी हर दिन नई चुनौती और इस संकट से पार पाने के लिए दानीजाला के लोग सरकार और सिस्टम से सिर्फ एक पुल की मांग कर रहे हैं। लेकिन कोई उनकी सुनने को तैयार नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि नदी पर पुल बनाने के लिए तीन बार स्वीकृति भी मिल गई लेकिन हर बार काम होने से पहले स्वीकृत रद्द हो जाती है पुल नहीं होने की वजह से सबसे ज्यादा परेशानी स्कूल आने जाने वाले बच्चों को उठानी पड़ रही है ग्रामीण पान सिंह बिष्ट बताते हैं कि 2014-2018 और 2021 में पुल की स्वीकृति तो मिल गई लेकिन आगे चलकर स्वीकृति रद्द हो गई। सरकार से लेकर शासन तक पुल निर्माण के लिए गुहार लगा चुके हैं। बच्चों और बीमार लोगों को लेकर हमेशा मन में डर रहता है। ट्राली से नदी पार करना कभी भी खतरनाक हो सकता है। पुल के लिए नैनीताल से लेकर देहरादून तक चक्कर लगा चुका हूं। दस्तावेजों का पुलिंदा लेकर घूमता हूं। बस एक ही मांग है कि हमें पुल मिले।